Shop
Showing 346–360 of 1001 resultsSorted by average rating
-
Hindi Literature
Kavya Aur Kala Tatha Anya Nibandh By Jaishankar Parsad (Hardcover)
‘काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध’ में नौ निबन्ध संकलित हैं, जिनमें तीन नाटक से संबंध रखते हैं। आरम्भ में काव्य और कला के संबंधों पर विचार किया गया है, फिर रहस्यवाद और रस का विवेचन है। बीच के नाटक संबंधी तीन निबन्धों के बाद आरम्भिक पाठ्यक्रम है और अंत में ‘यथार्थवाद और छायावाद’ शीर्षक समापन निबन्ध।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Manjhali Didi By Sarat chandra Chattopadhyay (Hardcover)
शरतचन्द्र भारतीय वांग्मय के ऐसे अप्रतिम हस्ताक्षर हैं जो कालातीत और युग संधियों से परे हैं। उन्होंने जिस महान साहित्य की रचना की है उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी पाठकों को सम्मोहित और संचारित किया है। उनके अनेक उपन्यास भारत की लगभग हर भाषा में उपलब्ध हैं। उन्हें हिंदी में प्रस्तुत कर हम गौरवान्वित हैं। प्रस्तुत उपन्यास ‘मझली दीदी’ एक ऐसी स्नेहमयी नारी की कहानी है जो अपनी जेठानी के अनाथ भाई को अपने बेटे के समान प्यार करने लगती है। यहां तक कि उसे अपनी जेठानी और जेठ आदि के अत्याचारों से बचाने के लिए पति को छोड़ने पर तैयार हो जाती है। इस सशक्त रचना पर ‘चौखेर बाली’ के नाम बंगाली में फिल्म भी बन रही है जिसमें मझली दीदी की भूमिका हिंदी की प्रसिद्ध नायिका ऐश्वर्या राय निभा रही हैं।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Parineeta By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
परिणीता कहानी है ललिता तथा शेखर की । ललिता के माता पिता का देहांत हो चुका है तथा वह अपने मामा मामी के परिवार के साथ रहती है। ललिता के मामा अपनी पुत्रियों तथा ललिता के विवाह के संदर्भ में बहुत चिंतित रहते हैं और इसी प्रक्रिया में उन्होंने अपनी एक मात्र संपत्ति, अपना घर शेखर के पिता को गिरवी दे दिया है। ललिता व शेखर एक दूसरे को बचपन से जानते है, यहाँ तक कि ललिता के जीवन में, शेखर की आज्ञा के बिना एक पत्ता तक नही हिलता । “ जिस प्रकार मनुष्य अपनी बुद्धि से सोचकर कोई धारणा निर्धारित कर लेता है, उसी प्रकार उसने अपनी स्वाभाविक बुद्धि से उसकी आज्ञा मानना स्वीकार कर लिया था । ” ललिता व शेखर एक दूसरे को पसंद तो करते है परंतु शेखर की पिता उसकी शादी किसी अमीर घर में करना चाहते हैं। कहानी में तीसरा एवं चिल्चस्प किरदार है, गिरीन्द्र बाबू। वे ललिता के पड़ोसी के भाई हैं तथा ललिता से विवाह भी करना चाहते हैं। गिरीन्द्र बाबू के मौजुदगी में यह प्रेम त्रिकोण एक अनूठा रूप लेता है।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Dehati Samaj By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय बांग्ला भाषा के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। हुगली जिले के देवानंदपुर गांव में 15 सितंबर 1876 में उनका जन्म हुआ। शरतचंद्र के नौ भाई-बहन थे। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की लेखनी का शरत पर गहरा प्रभाव पड़ा। करीब 18 साल की उम्र में उन्होंने “बासा” (घर) नाम से एक उपन्यास लिखा लेकिन यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वे इसकी पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार के तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Path Ke Davedar By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
आजीविका के नाम पर बंगाली युवा ब्राह्मण अपूर्व बर्मा (अब म्यांमार) चला तो गया किंतु वहां परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि वह क्रांतिकारियों का हमदर्द बन गया। शायद इस के पीछे युवा भारती का आकर्षण भी एक कारण रहा हो। बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर रचित इस उपन्यास – ‘पथ के दावेदार’ के माध्यम से ‘नारी वेदना के पुरोहित’ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने क्रांतिकारी गतिविधियों के साथसाथ तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिपांति, ऊंचनीच आदि सामाजिक बुराइयों को रेखांकित किया है।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Biraj Bahu By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
हुगली जिले का सप्तग्राम-उसमें दो भाई नीलाम्बर व पीताम्बर रहते थे। नीलाम्बर मुर्दे जलाने, कीर्तन करने, ढोल बजाने और गांजे का दम भरने में बेजोड़ था। उसका कद लम्बा, बदन गोरा, बहुत ही चुस्त, फुर्तीला तथा ताकतवर था। दूसरों के के मामले में उसकी ख्याति बहुत थी तो गंवारपन में भी वह गाँव- -भर में बदनाम था। मगर उसका छोटा भाई पीताम्बर उसके विपरीत था। वह दुर्बल तथा नाटे कद का था। शाम के बाद किसी के मरने का समाचार सुनकर उसका शरीर अजीब-सा हो जाता था। वह अपने भाई जैसा मूर्ख ही नहीं था तथा मूर्खता की कोई बात भी उसमें नहीं थी । सवेरे ही वह भोजन करके अपना बस्ता लेकर अदालत चला जाता था। पश्चिमी तरफ एक आम के पेड़ के नीचे बैठकर वह दिनभर अर्जियां लिखा करता था। वह जो कुछ भी कमाता था, उसे घर आकर सन्दूक में बंद कर देता था। रात को सारे दरवाजे-खिड़कियां बन्द कर और उनकी कई बार जाँच करने के बाद वह सोता था।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Brahmin Ki Beti By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
मुहल्ले में घूमने-फिरने के बाद रासमणि अपनी नातिन के साथ घर लौट रही थी। गाँव की सड़क कम चौड़ी थी, उस सड़क के एक ओर बंधा पड़ा मेमना (बकरी का बच्चा) सो रहा था। उसे देखते ही बुढ़िया नातिन को चेतावनी देने के स्वर में सावधान करती हुई बोली ‘ऐ लड़की, कहीं आँख मींचकर चलती हुई मेमने की रस्सी लांधने की मूर्खता न कर बैठना।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Shrikant By Sarat Chandra Chattopadhyah (Hardcover)
आत्मकथात्मक शैली में रचित एवं चार भागों में विभक्त ‘श्रीकान्त’ शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय का रोचक, पठनीय एवं संग्रहणीय उपन्यास है, जो पुरुष प्रधान होते हुए भी नारी संवेदना का संवाहक है। इसके नायक श्रीकांत बचपन से ही धुन के धनी और मस्तमौला थे। किसी के साथ या एक ही जगह लंबे समय तक रहना उन की प्रकृति के विरुद्ध था। समाज में उन्हें कोई अपना कहने वाला था, तो केवल उनकी बचपन की सहपाठिन राजलक्ष्मी, जिसने नौ साल की उम्र में ही चैदह साल के किशोर श्रीकांत को करौंदों की माला पहनाकर अपना बनाना चाहा था। फिर भी क्या वह श्रीकांत को अपना बना सकी? यही इस उपन्यास का कथ्य है।
SKU: n/a -
Novel
Devdas By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
‘देवदास, पारो और चन्द्रमुखी- ये तीन किरदार प्रेम ५के ऐसे प्रतीक बन गये हैं कि उनकी गिनती लैला-मजनू, शीरी – फरहाद, हीर-रांझा के साथ होने लगी है। बीसवीं सदी के बंगाल के ज़मींदार समाज की पृष्ठभूमि में स्थित यह एक मार्मिक प्रेमगाथा है। इसमें देवदास को अपने बचपन की साथी पारो से अटूट प्यार है। लेकिन यह प्यार परवान नहीं चढ़ता। हताश, परेशान देवदास जब शराब को अपना सहारा बना लेता है तब उसकी ज़िन्दगी में आती है चन्द्रमुखी। देवदास और चन्द्रमुखी का रिश्ता अनोखा है- जिसमें प्यार की अनुभूति के विभिन्न रंग एक साथ झलकते हैं। उपन्यास के हर पृष्ठ पर लेखक की गहरी संवेदना, बारीकी से अपने आस-पास के समाज को देखने-परखने की नज़र और इन सबको अपनी कलम से कागज़ पर उतारने की बेजोड़ क्षमता ही कारण है कि 1917 में लिखा यह उपन्यास आज भी पाठकों के बीच इतना लोकप्रिय है। बांगला लेखक शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के इस लोकप्रिय उपन्यास का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और भारत में ही इस पर कई भाषाओं में एक दर्जन से अधिक फिल्में बन चुकी हैं।
SKU: n/a -
Religion
Transformation of Shiva From Myth To Man By Dr. Seema Devi (Hardcover)
Dr. Seema Devi is a researcher of mythology and Indian culture.The magnificence of Indian rituals, ancient myths, moderncustoms in Indian society and devotion for Shiva Allured her topursue it extensively in her book as well. Recently her variousarticles, entitled “Transformation of Shiva from Myth to Man inShiva Trilogy of Amish Tripathi: A Study”, “Demystifying ShivaMyth in Works of Devdutt Pattanaik and Amish Tripathi, AnIndigenous Study”, “Quest. A Recurrent Motif in SelectedNavels of Saul Bellow: A Study of Dangling Man and Herzog,“Emerging Form of Literature: Myth not Mithya”, “Mythological Trend in IndianLiterature: A Study of Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”,”Research Rules andRegulations”, “Two Sides, Same Coin -Creator Ram and Destroyer Shiva: AMatter of Perspective in Shiva Trilogy of Amish Tripathi”, “An Analytical Study ofModernized Regionality of Indian Myths in Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”,Symbols Decoded A Mythological Study of Amish Tripathi Shiva Trilogy””A StoryEmbedded in Philosophy: A Depth Study of Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”. “Twoextreme Horizons- Sati and Kali: A Revolutionization of Feminism in AmishTripathi’s Shiva Trilogy published in reputed journals. She attended manynational/international seminars and conferences, presented papers, chaired thesession and got appreciation.The present book Transformation of Shiva from Myth to Man is an effort todecode the symbols related to the Shiva of Devdutt Pattanaik and Amish Tripathiin the light of mythological stance and present the most humane side of him. He isstudied as a myth, as a man, a family man and God of transformation. His blueThroat, Somras as Evil, Number Three, God of Destruction and Ash Bearer, Snakeor Nagas, Aum, Ardhnarishwar, snow-clad mountain, all these core symbols thatenwrap persona of Shiva are elucidated. Its an effort to demystify the myth of thisancient ford and awake young generation about enriched and the most valuedIndian cultureSKU: n/a -
Fiction, Novel
Anuradha By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
लड़की के विवाह योग्य आयु होने के सम्बन्ध में जितना भी झूठ बोला जा सकता है, उतना झूठ बोलने के बाद भी उसकी सीमा का अतिक्रमण किया जा चुका है और अब तो विवाह होने की आशा भी समाप्त चुकी है। ‘मैया री मैया! यह कैसी बात है?” से आरम्भ करके, आंखें मिचकाकर लड़की के लड़के-बच्चों की गिनती पूछने तक में अब किसी को रस नहीं मिलता। समाज में अब यह मजाक भी निरर्थक समझा जाने लगा है। ऐसी ही दशा है बेचारी अनुराधा की। और दिलचस्प बात यह है कि घटना किसी प्राचीन युग की नहीं बल्कि एकदम आधुनिक युग की है। इस आधुनिक युग में भी केवल दान- दहेज, पंचाग, जन्म-कुंड़ली और कुल-शील की जांच-पड़ताल करते-करते एसा हुआ कि अनुराधा की उम्र तेईस को पार कर गई, फिर भी उसके लिए वर नहीं मिला।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Premashram By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।” 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सिनेटोन कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए। उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।
SKU: n/a -
Fiction, Novel
Prema By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमा मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया पहला उपन्यास है। यह उपन्यास मूलतः उर्दू भाषा में लिखा गया था। उर्दू में यह ‘हमखुर्मा व हमखवाब’ नाम से प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास विधवा विवाह पर केंद्रित है, जो प्रेमा पूर्णा और अमृतलाल जैसे पात्रों के इर्द-गिर्द रचा गया है और उनके जीवन का चित्रण कर तत्कालीन सामाजिक स्थिति को उजागर करता है।
SKU: n/a