Tales From Gorky: With A Biographical Notice Of the Author by R. Nisbet Bain (Hardback))
Alexei Maximovich Peshkov, popularly known as Maxim Gorky, was a Russian and Soviet writer and socialist political thinker and proponent. He was nominated five times for the Nobel Prize in Literature.
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Do Behnein By Rabindranath Tagore (Hardcover)
0 out of 5(0)स्त्रियाँ दो जाति की होती हैं, ऐसा मैंने किसी-किसी पंडित से सुना है। एक जाति प्रधानतया माँ होती है, दूसरी प्रिया । ऋतुओं के साथ यदि तुलना की जाय तो माँ होगी वर्षाऋतु यह जल देती है, फल देती है, ताप शमन करती है, ऊर्ध्वलोक से अपने आपको विगलित कर देती है, शुष्कता को दूर करती है, अभावों को भर देती है। और प्रिया है वसन्तऋतु। गभीर है उसका रहस्य, मधुर है उसका मायामंत्र। चञ्चलता उसकी रक्त में तरङ्ग लहरा देती है और चित्त के उस मणिकोष्ठ में पहुँचती है जहाँ सोने की वीणा में एक निभृत तार चुपचाप, झंकार की प्रतीक्षा में, पड़ा हुआ है; झंकार- जिससे समस्त देह और मन में अनिर्वचनीय की वाणी झंकृत हो उठती है।
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Archana By Suryakant Tripathi (Hardcover)
0 out of 5(0)‘अर्चना’ निराला की परवर्ती काव्य-चरण की प्रथम कृति है ! इसके प्रकाशन के बाद कुछ आलोचकों ने इसमें उनका प्रत्यावर्तन देखा था! लेकिन सच्चाई यह है कि जैसे ‘बेला’ के गीत अपनी धज में ‘गीतिका’ के गीतों से भिन्न हैं, वैसे ही ‘अर्चन’ के गीत भी ‘गीतिका’ ही नहीं, ‘बेला’ के गीतों से भिन्न हैं!
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Ram Ki Shakti Pooja By Suryakant Tripathi (Hardcover)
0 out of 5(0)सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ को ‘महाप्राण’ भी कहा जाता है। उनकी कविता ‘राम की शक्ति पूजा’ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर है. खड़ी बोली की इस लंबी कविता में रामायण की कथा बताई गई। इसमें खासकर राम और रावण के भीषण युद्ध का वर्णन है। ‘राम की शक्ति पूजा’ काव्य को निराला जी ने 23 अक्टूबर 1936 में पूरा किया था। इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र ‘भारत’ में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। ‘राम की शक्ति पूजा’ कविता 312 पंक्तियों की एक लम्बी कविता है। इसमें ‘महाप्राण’ के स्वरचित छंद ‘शक्ति पूजा’ का प्रयोग किया गया है। इस कविता में कवि ने राम को एक साधारण मानव के धरातल पर खड़ा किया है, जो थकता भी है, टूटता भी है और उसके मन में जय एवं पराजय का भीषण द्वन्द्व भी चलता है।
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Geetika By Suryakant Tripathi (Hardcover)
0 out of 5(0)गीतिका का प्रकाशन-काल सन् 1936 ई. है। इसमें सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के नये स्वर- तालयुक्त शास्त्रानुमोदित गीत संगृहित हैं। खड़ी बोली में इस प्रकार के प्रथम गीत- रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं। उनके नाटकों के अंतर्गत जिन गीतों की सृष्टि हुई है, वे सर्वथा शास्त्रानुमोदित हैं किंतु ये गीत विशेष वातावरण में उनके पात्रों द्वारा गाये जाते है। ये गीत पात्र तथा वातावरण सापेक्ष हैं। शास्त्रानुमोदित निरपेक्ष गीतों की सर्जना का श्रेय ‘निराला’ को ही है। शास्त्रानुमोदित का तात्पर्य यह नहीं कि ये गीत भी पुरानी राग- रागनियों के बंधनों से बँधे हुए हैं।
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