Novel
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Fiction, Novel
Our Mutual Friend By Charles Dickens (Hard Cover)
John Harmon returns to England after years in exile toclaim his inheritance: a great fortune and a beautifulyoung woman to whom he is betrothed, but hasnever met. When Harmon’s body is pulled out of theThames, all of London is fascinated by the mystery ofthe murdered man and his unclaimed riches.Scavengers, social-climbers, lawyers and teachers, amoney-lender and a dolls-dressmaker, men andwomen both honest and villainous, will all becomeembroiled in this tale of love and obsession, deathand rebirth.SKU: n/a -
Fiction, Novel
Parineeta By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
परिणीता कहानी है ललिता तथा शेखर की । ललिता के माता पिता का देहांत हो चुका है तथा वह अपने मामा मामी के परिवार के साथ रहती है। ललिता के मामा अपनी पुत्रियों तथा ललिता के विवाह के संदर्भ में बहुत चिंतित रहते हैं और इसी प्रक्रिया में उन्होंने अपनी एक मात्र संपत्ति, अपना घर शेखर के पिता को गिरवी दे दिया है। ललिता व शेखर एक दूसरे को बचपन से जानते है, यहाँ तक कि ललिता के जीवन में, शेखर की आज्ञा के बिना एक पत्ता तक नही हिलता । “ जिस प्रकार मनुष्य अपनी बुद्धि से सोचकर कोई धारणा निर्धारित कर लेता है, उसी प्रकार उसने अपनी स्वाभाविक बुद्धि से उसकी आज्ञा मानना स्वीकार कर लिया था । ” ललिता व शेखर एक दूसरे को पसंद तो करते है परंतु शेखर की पिता उसकी शादी किसी अमीर घर में करना चाहते हैं। कहानी में तीसरा एवं चिल्चस्प किरदार है, गिरीन्द्र बाबू। वे ललिता के पड़ोसी के भाई हैं तथा ललिता से विवाह भी करना चाहते हैं। गिरीन्द्र बाबू के मौजुदगी में यह प्रेम त्रिकोण एक अनूठा रूप लेता है।
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Fiction, Novel
Path Ke Davedar By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
आजीविका के नाम पर बंगाली युवा ब्राह्मण अपूर्व बर्मा (अब म्यांमार) चला तो गया किंतु वहां परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि वह क्रांतिकारियों का हमदर्द बन गया। शायद इस के पीछे युवा भारती का आकर्षण भी एक कारण रहा हो। बंगाल के क्रांतिकारी आंदोलन की पृष्ठभूमि पर रचित इस उपन्यास – ‘पथ के दावेदार’ के माध्यम से ‘नारी वेदना के पुरोहित’ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने क्रांतिकारी गतिविधियों के साथसाथ तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिपांति, ऊंचनीच आदि सामाजिक बुराइयों को रेखांकित किया है।
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Fiction, Novel
Pollyanna by Eleanor H. Porter (Hardback)
- Page : 191
- ISBN : 9789394885318
- Dimensions : 22.5 x 14.5 x 1.5 cm
The stern MS Polly’s household is disrupted when her orphaned niece comes to live with her. The endearing child is always ready to please, but doesn’t really believe in doing what her heart rejects. She brightens the serious household with her optimistic attitude, playing what she calls ‘just being glad game. Always smiling and helpful, Pollyanna touches the lives of many people in the neighbourhood – teaching them a new way to live. Pollyanna is a story which emphasises there is always something to be glad about in life, only if one really looks for it.
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Pratigaya By Munshi Prem Chand (Hardcover)
The novel ‘Pratigya’ is a live depiction of the compulsions and destiny of an Indian woman living suffocating in adverse circumstances. Widower Amritrai, the hero of ‘Pratigya’, wants to marry a widow so that the life of a young woman is not destroyed. Poorna the heroin is an unsupported widow. The hungry wolves of the society want to destroy its accumulation. In the novel, Premchand has presented the widow problem in a new form and has also suggested an alternative.
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Fiction, Novel
Prema By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमा मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया पहला उपन्यास है। यह उपन्यास मूलतः उर्दू भाषा में लिखा गया था। उर्दू में यह ‘हमखुर्मा व हमखवाब’ नाम से प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास विधवा विवाह पर केंद्रित है, जो प्रेमा पूर्णा और अमृतलाल जैसे पात्रों के इर्द-गिर्द रचा गया है और उनके जीवन का चित्रण कर तत्कालीन सामाजिक स्थिति को उजागर करता है।
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Premashram By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।” 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सिनेटोन कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए। उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।
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Premchand ki Anmol Kahaniya (Hindi) By Premchand (Hardcover)
Coming soon, Fiction, Novel, Short StoryPremchand ki Anmol Kahaniya (Hindi) By Premchand (Hardcover)
The most celebrated writer of Hindi literature, Munshi Premchand penned stories that were tragic yet heart-warming, fantastic yet lauded for their realism. This is a covetable collection that every reader will cherish, featuring masterpieces such as ‘Grahdaah, Abhushan’, ‘Sachchayi ka Upkaar’, ‘Haar Ki Jeet and Updesh’, and many more.
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Coming soon, Fiction, Novel, Short Story
Premchand ki Shreshtha Kahaniyan By Premchand (Hardcover)
Premchand Ki Shreshth Kahaniyan is a covetable collection of stories written by Munshi Premchand, a writer who towers above the rest in the history of Indian literature. It includes poignant and beautiful stories: some centred around memorable women characters, such as ‘Maa’, ‘Shanti’, and ‘Jhanki’, some of betrayal such as ‘Lanchhan’, and ‘Doodh ka Daam’ which subtly but powerfully exposes the social issues of Premchand’s time, along with many other stories that will regale you with a perfect portrait of the reality of life in India.
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Coming soon, Fiction, Novel
Priya Kahaniyan By Premchand (Hardcover)
Eulogised as the ‘Upanyas Samrat’, Premchand has continued to be one of the seminal figures of Hindi writing canon. His texts put forth the realities of his contemporary twentieth century milieu and raises important questions of caste, class, societal, disjunct, et al. With more than three hundred short stories, a multitude of essays, letters, plays, and translations, Premchand’s significance to Indian literature and its rendezvous with uniquely Indian themes remains unparalleled.This collection is expressive of Premchand’s idiosyncratic literary skills as the texts put forth Premchand’s artistic investiveness coupled with his stark critique of social and cultural injustices. The flair, thematic, brilliance, grassroot level linguistics and enamouring storytelling reactily capture the reader’s attention as they foray into the literary world created by the writer.
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Fiction, Novel
Ramcharcha By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमचंद (प्रेमचन्द) के साहित्यिक जीवन का आरंभ (आरम्भ) 1901 से हो चुका था आरंभ (आरम्भ) में वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है। “उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ है जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। १९०८ ई. में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायन निगम ने रखा था। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
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Fiction, Novel
Rangbhoomi By Munshi Premchand (Hardcover)
Premchand was born on 31 July 1880 in a Kayastha family in Lamahi village of Varanasi district (Uttar Pradesh). His mother’s name was Anandi Devi and father’s name was Munshi Ajaybrai, who was a postman in Lamhi. His real name was Dhanpat Rai Srivastava. Premchand (Premchand) had his early education in Persian. In relation to Premchand’s parents, Ramvilas Sharma writes that- “When he was seven years old, his mother died. He was married when he was fifteen and his father died when he was sixteen years old. also passed away.”During the non-cooperation movement in 1921, on the call of Mahatma Gandhi to leave the government job, he resigned from the post of school inspector on 23rd June. After this he made writing his profession. He worked as an editor in magazines like Maryada, Madhuri etc. In the meantime, he along with Pravasilal also bought Saraswati Press and brought out Hans and Jagran. The press did not prove commercially profitable for him. In 1933, he accepted Mohanlal Bhavnani’s offer to work as a story writer in the Cinetone Company to settle his debts. Premchand did not like the film city. He could not complete even one year’s contract and left two months’ salary and returned to Banaras. His health continued to deteriorate. He died on 8 October 1936 after a long illness.SKU: n/a