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Novel
Devdas By Sarat Chandra Chattopadhyay (Hardcover)
‘देवदास, पारो और चन्द्रमुखी- ये तीन किरदार प्रेम ५के ऐसे प्रतीक बन गये हैं कि उनकी गिनती लैला-मजनू, शीरी – फरहाद, हीर-रांझा के साथ होने लगी है। बीसवीं सदी के बंगाल के ज़मींदार समाज की पृष्ठभूमि में स्थित यह एक मार्मिक प्रेमगाथा है। इसमें देवदास को अपने बचपन की साथी पारो से अटूट प्यार है। लेकिन यह प्यार परवान नहीं चढ़ता। हताश, परेशान देवदास जब शराब को अपना सहारा बना लेता है तब उसकी ज़िन्दगी में आती है चन्द्रमुखी। देवदास और चन्द्रमुखी का रिश्ता अनोखा है- जिसमें प्यार की अनुभूति के विभिन्न रंग एक साथ झलकते हैं। उपन्यास के हर पृष्ठ पर लेखक की गहरी संवेदना, बारीकी से अपने आस-पास के समाज को देखने-परखने की नज़र और इन सबको अपनी कलम से कागज़ पर उतारने की बेजोड़ क्षमता ही कारण है कि 1917 में लिखा यह उपन्यास आज भी पाठकों के बीच इतना लोकप्रिय है। बांगला लेखक शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय के इस लोकप्रिय उपन्यास का अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और भारत में ही इस पर कई भाषाओं में एक दर्जन से अधिक फिल्में बन चुकी हैं।
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Religion
Transformation of Shiva From Myth To Man By Dr. Seema Devi (Hardcover)
Dr. Seema Devi is a researcher of mythology and Indian culture.The magnificence of Indian rituals, ancient myths, moderncustoms in Indian society and devotion for Shiva Allured her topursue it extensively in her book as well. Recently her variousarticles, entitled “Transformation of Shiva from Myth to Man inShiva Trilogy of Amish Tripathi: A Study”, “Demystifying ShivaMyth in Works of Devdutt Pattanaik and Amish Tripathi, AnIndigenous Study”, “Quest. A Recurrent Motif in SelectedNavels of Saul Bellow: A Study of Dangling Man and Herzog,“Emerging Form of Literature: Myth not Mithya”, “Mythological Trend in IndianLiterature: A Study of Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”,”Research Rules andRegulations”, “Two Sides, Same Coin -Creator Ram and Destroyer Shiva: AMatter of Perspective in Shiva Trilogy of Amish Tripathi”, “An Analytical Study ofModernized Regionality of Indian Myths in Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”,Symbols Decoded A Mythological Study of Amish Tripathi Shiva Trilogy””A StoryEmbedded in Philosophy: A Depth Study of Amish Tripathi’s Shiva Trilogy”. “Twoextreme Horizons- Sati and Kali: A Revolutionization of Feminism in AmishTripathi’s Shiva Trilogy published in reputed journals. She attended manynational/international seminars and conferences, presented papers, chaired thesession and got appreciation.The present book Transformation of Shiva from Myth to Man is an effort todecode the symbols related to the Shiva of Devdutt Pattanaik and Amish Tripathiin the light of mythological stance and present the most humane side of him. He isstudied as a myth, as a man, a family man and God of transformation. His blueThroat, Somras as Evil, Number Three, God of Destruction and Ash Bearer, Snakeor Nagas, Aum, Ardhnarishwar, snow-clad mountain, all these core symbols thatenwrap persona of Shiva are elucidated. Its an effort to demystify the myth of thisancient ford and awake young generation about enriched and the most valuedIndian cultureSKU: n/a -
Fiction, Novel
Premashram By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।” 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी के सरकारी नौकरी छोड़ने के आह्वान पर स्कूल इंस्पेक्टर पद से 23 जून को त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद उन्होंने लेखन को अपना व्यवसाय बना लिया। मर्यादा, माधुरी आदि पत्रिकाओं में वे संपादक पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान उन्होंने प्रवासीलाल के साथ मिलकर सरस्वती प्रेस भी खरीदा तथा हंस और जागरण निकाला। प्रेस उनके लिए व्यावसायिक रूप से लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ। 1933 ई. में अपने ऋण को पटाने के लिए उन्होंने मोहनलाल भवनानी के सिनेटोन कम्पनी में कहानी लेखक के रूप में काम करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। फिल्म नगरी प्रेमचंद को रास नहीं आई। वे एक वर्ष का अनुबन्ध भी पूरा नहीं कर सके और दो महीने का वेतन छोड़कर बनारस लौट आए। उनका स्वास्थ्य निरन्तर बिगड़ता गया। लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।
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Fiction, Novel
Prema By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमा मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखा गया पहला उपन्यास है। यह उपन्यास मूलतः उर्दू भाषा में लिखा गया था। उर्दू में यह ‘हमखुर्मा व हमखवाब’ नाम से प्रकाशित हुआ था। यह उपन्यास विधवा विवाह पर केंद्रित है, जो प्रेमा पूर्णा और अमृतलाल जैसे पात्रों के इर्द-गिर्द रचा गया है और उनके जीवन का चित्रण कर तत्कालीन सामाजिक स्थिति को उजागर करता है।
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Fiction, Novel
Nirmala By Munshi Premchand (Hardcover)
निर्मला, मुंशी प्रेमचन्द द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी उपन्यास है। इसका प्रकाशन सन १९२७ में हुआ था। सन १९२६ में दहेज प्रथा और अनमेल विवाह को आधार बना कर इस उपन्यास का लेखन प्रारम्भ हुआ। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली महिलाओं की पत्रिका ‘चाँद’ में नवम्बर १९२५ से दिसम्बर १९२६ तक यह उपन्यास विभिन्न किस्तों में प्रकाशित हुआ। महिला-केन्द्रित साहित्य के इतिहास में इस उपन्यास का विशेष स्थान है। इस उपन्यास की कथा का केन्द्र और मुख्य पात्र ‘निर्मला’ नाम की १५ वर्षीय सुन्दर और सुशील लड़की है। निर्मला का विवाह एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से कर दिया जाता है। जिसके पूर्व पत्नी से तीन बेटे हैं। निर्मला का चरित्र निर्मल है, परन्तु फिर भी समाज में उसे अनादर एवं अवहेलना का शिकार होना पड़ता है। उसकी पति परायणता काम नहीं आती। उस पर सन्देह किया जाता है, उसे परिस्थितियाँ उसे दोषी बना देती है। इस प्रकार निर्मला विपरीत परिस्थितियों से जूझती हुई मृत्यु को प्राप्त करती है।
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Fiction, Novel
Karmabhoomi By Munshi PremChand (Hardcover)
प्रेमचंद (प्रेमचन्द) के साहित्यिक जीवन का आरंभ (आरम्भ) 1901 से हो चुका था आरंभ (आरम्भ) में वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि-“प्रेमचंद की पहली रचना, , जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है।”उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ है जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। १९०८ ई. में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायन निगम ने रखा था। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
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Fiction, Novel
Sevasadan By Munshi Premchand (Hardcover)
Highlighting the social issues prevalent in the country at the turn of the twentieth century, Munshi prenchand’s sevasadan (1918) narrates the poignant tale of Suman, who is trapped in an unhappy, mismatched marriage owing to the evils of the Dowry system. It traces her journey from being the virtuous housewife to being ‘Sumangali’, a courtesan in the kothas of Varanasi.
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Fiction, Novel
Ramcharcha By Munshi Premchand (Hardcover)
प्रेमचंद (प्रेमचन्द) के साहित्यिक जीवन का आरंभ (आरम्भ) 1901 से हो चुका था आरंभ (आरम्भ) में वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- “प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है। “उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास ‘असरारे मआबिद’ है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास ‘हमखुर्मा व हमसवाब’ है जिसका हिंदी रूपांतरण ‘प्रेमा’ नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। १९०८ ई. में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायन निगम ने रखा था। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
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Fiction, Novel
Rangbhoomi By Munshi Premchand (Hardcover)
Premchand was born on 31 July 1880 in a Kayastha family in Lamahi village of Varanasi district (Uttar Pradesh). His mother’s name was Anandi Devi and father’s name was Munshi Ajaybrai, who was a postman in Lamhi. His real name was Dhanpat Rai Srivastava. Premchand (Premchand) had his early education in Persian. In relation to Premchand’s parents, Ramvilas Sharma writes that- “When he was seven years old, his mother died. He was married when he was fifteen and his father died when he was sixteen years old. also passed away.”During the non-cooperation movement in 1921, on the call of Mahatma Gandhi to leave the government job, he resigned from the post of school inspector on 23rd June. After this he made writing his profession. He worked as an editor in magazines like Maryada, Madhuri etc. In the meantime, he along with Pravasilal also bought Saraswati Press and brought out Hans and Jagran. The press did not prove commercially profitable for him. In 1933, he accepted Mohanlal Bhavnani’s offer to work as a story writer in the Cinetone Company to settle his debts. Premchand did not like the film city. He could not complete even one year’s contract and left two months’ salary and returned to Banaras. His health continued to deteriorate. He died on 8 October 1936 after a long illness.SKU: n/a -
Novel
Pratigaya By Munshi Prem Chand (Hardcover)
The novel ‘Pratigya’ is a live depiction of the compulsions and destiny of an Indian woman living suffocating in adverse circumstances. Widower Amritrai, the hero of ‘Pratigya’, wants to marry a widow so that the life of a young woman is not destroyed. Poorna the heroin is an unsupported widow. The hungry wolves of the society want to destroy its accumulation. In the novel, Premchand has presented the widow problem in a new form and has also suggested an alternative.
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Fiction, Novel
Durgadas By Munshi Premchand (Hardcover)
जोधपुर के महाराज जसवन्तसिंह की सेना में आशकरण नाम के एक राजपूत सेनापति थे, बड़े सच्चे, वीर, शीलवान् और परमार्थी। उनकी बहादुरी की इतनी धाक थी, कि दुश्मन उनके नाम से कांपते थे। दोनों दयावान् ऐसे थे कि मारवाड़ में कोई अनाथ न था।, जो उनके दरबार से निराश लौटे। जसवन्तसिंह भी उनका :बड़ा आदर-सत्कार करते थे। वीर दुर्गादास उन्हीं के लड़के थे। छोटे का नाम जसकरण था। सन् 1605 ई., में आशकरण जी उज्जैन की लड़ाई में धोखे से मारे गये। उस समय दुर्गादास केवल पंद्रह वर्ष के थे पर ऐसे होनहार थे, कि जसवन्तसिंह अपने बड़े बेटे पृथ्वीसिंह की तरह इन्हें भी प्यार करने लगे। कुछ दिनों बाद जब महाराज दक्खिन की सूबेदारी पर गये, तो पृथ्वीसिंह को राज्य का भार सौंपा और वीर दुर्गादास को सेनापति बनाकर अपने साथ कर लिया। उस समय दक्खिन में महाराज शिवाजी का साम्राज्य था। मुगलों की उनके सामने एक न चलती थी; इसलिए औरंगजेब ने जसवन्तसिंह को भेजा था। जसवन्तसिंह के पहुंचते ही मार-काट बन्द हो गई। धीरे-धीरे शिवाजी और जसवन्तसिंह में मेल-जोल हो गया। औरंगजेब की इच्छा तो थी कि शिवाजी को परास्त किया जाये। यह इरादा पूरा न हुआ, तो उसने जसवन्तसिंह को वहां से हटा दिया, और कुछ दिनों उन्हें लाहौर में रखकर फिर काबुल भेज दिया। काबुल के मुसलमान इतनी आसानी से दबने वाले नहीं थे। भीषण संग्राम हुआ; जिसमें महाराजा के दो लड़के मारे गये। बुढ़ापे में जसवन्तसिंह को यही गहरी चोट लगी। बहुत दुःखी होकर वहां से पेशावर चले गये।
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Fiction, Novel
GOdan By Munshi Premchand (Hardcover)
गोदान उपन्यास प्रेमचंद का अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। प्रेमचंद ने गोदान को 1932 में लिखना शुरू किया था और 1936 में प्रकाशित करवाया था। 1936 में प्रकाशित गोदान उपन्यास को हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय बम्बई द्वारा किया गया था । संसार की शायद ही कोई भाषा होगी, जिसमे गोदान का अनुवाद न हुआ हो । प्रेमचंद का गोदान,किसान जीवन के संघर्ष एवं वेदना को अभिव्यक्त करने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है। यह प्रेमचंद की आकस्मिक रचना नहीं है, उनके जीवन भर के लेखन प्रयासों का निष्कर्ष है। यह रचना और भी तब महत्त्वपूर्ण बन जाती है, जब प्रेमचंद भारत के ऐसे कालखंड का वर्णन करते है, जिसमे सामंती समाज के अंग किसान और ज़मींदार दोनों ही मिट रहे है और पूंजीवादी समाज के मज़दूर तथा उद्योगपति उनकी जगह ले रहे है। गोदान, ग्रामीण जीवन और कृषक संस्कृति का महाकाव्य कहा जा सकता है। ग्रामीण जीवन का इतना वास्तविक, व्यापक और प्रभावशाली चित्रण, हिन्दी साहित्य के किसी अन्य उपन्यास में नहीं हुआ है।
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Fiction, Novel
Gaban By Munshi Premchand (Hardcover)
गबन प्रेमचंद द्वारा रचित उपन्यास है। ‘निर्मला’ के बाद ‘गबन’ प्रेमचंद का दूसरा यथार्थवादी उपन्यास है। कहना चाहिए कि यह उसके विकास की अगली कड़ी है। ग़बन का मूल विषय है- ‘महिलाओं का पति के जीवन पर प्रभाव’ । ग़बन प्रेमचन्द के एक विशेष चिन्ताकुल विषय से सम्बन्धित उपन्यास है। यह विषय है, गहनों के प्रति पत्नी के लगाव का पति के जीवन पर प्रभाव। गबन में टूटते मूल्यों के अंधेरे में भटकते मध्यवर्ग का वास्तविक चित्रण किया गया। इन्होंने समझौतापरस्त और महत्वाकांक्षा से पूर्ण मनोवृत्ति तथा पुलिस के चरित्र को बेबाकी से प्रस्तुत करते हुए कहानी को जीवंत बना दिया गया है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने पहली नारी समस्या को व्यापक भारतीय परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा है और उसे तत्कालीन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जोड़कर देखा है। सामाजिक जीवन और कथा-साहित्य के लिए यह एक नई दिशा की ओर संकेत करता है। यह उपन्यास जीवन की असलियत की छानबीन अधिक गहराई से करता है, भ्रम को तोड़ता है। नए रास्ते तलाशने के लिए पाठक को नई प्रेरणा देता है।
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