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Hindi Literature
Dhruvswamini (Natak) by Jaishankar Prasad (H.B)
ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है। इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव जीवन का स्वरूप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास की वर्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है। रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है। इसके संवाद भी पात्रा अनुकूल और लघु हैं। भाषा पात्रों की भाषा के अनुकूल है। मसलन ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। इस नाटक में अनेक स्थलों पर अर्थवाक्यों की योजना है जो नाटक में सौंदर्य और गहरे अर्थ की सृष्टि करती है।
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Hindi Literature
Jaishankar Prasad ki Rachnaye (H.B)
महाकवि कथाकार नाटककार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती है बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी के बारे में अभी बातें खत्म नहीं हुई है उनकी कई सारी कविताएं कहानियां है जो आपको यथार्थ का भाव कराएंगी।
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Hindi Literature
Skandgupt (Natak) by Jaishankar Prasad (H.B)
‘स्कन्दगुप्त’ नाटक 1928 में प्रकाशित एक ऐतिहासिक नाटक है। स्कंदगुप्त नाटक में गुप्तवंश के सन् 455 से लेकर सन् 466 तक के 11 वर्षों का वर्णन है। इस नाटक में लेखक ने गुप्त कालीन संस्कृति, इतिहास, राजनीति संघर्ष, पारिवारिक कलह एवं षडयंत्रों का वर्णन किया है। स्कंदगुप्त हूणों के आक्रमण (455 ई०) से हूण युद्ध की समाप्ति (466) तक की कहानी है। गुप्त राजवंश का समय 275 ई० से 540 ई० तक रहा। यह नाटक देशभक्त, वीर, साहसी, प्रेमी स्कंदगुप्त विक्रमादित्य के जीवन पर आधारित ऐतिहासिक नाट्यकृति है। नाटक का आरम्भ स्कंदगुप्त के इस कथन से होता है। ” अधिकार सुख कितना मादक और सारहीन है। ” छायावाद के आधार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी में हुआ था। वह संपन्न व्यापारिक घराने के थे और उनका परिवार संपन्नता में केवल काशी नरेश से ही पीछे था। पिता और बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही विद्यालय छोड़कर व्यवसाय में उतरना पड़ा। उनकी ज्ञान वृद्धि फिर स्वाध्याय से हुई। उन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फ़ारसी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया, साथ ही वैदिक वांग्मय और भारतीय दर्शन का भी ज्ञान अर्जित किया। वह बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। आठ-नौ वर्ष की आयु में अमरकोश और लघु कौमुदी कंठस्थ कर लिया था जबकि ‘कलाधर उपनाम से कवित्त और सवैये भी लिखने लगे थे।
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