Novel by Rabindranath Tagore
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Do Behnein By Rabindranath Tagore (Hardcover)
स्त्रियाँ दो जाति की होती हैं, ऐसा मैंने किसी-किसी पंडित से सुना है। एक जाति प्रधानतया माँ होती है, दूसरी प्रिया । ऋतुओं के साथ यदि तुलना की जाय तो माँ होगी वर्षाऋतु यह जल देती है, फल देती है, ताप शमन करती है, ऊर्ध्वलोक से अपने आपको विगलित कर देती है, शुष्कता को दूर करती है, अभावों को भर देती है। और प्रिया है वसन्तऋतु। गभीर है उसका रहस्य, मधुर है उसका मायामंत्र। चञ्चलता उसकी रक्त में तरङ्ग लहरा देती है और चित्त के उस मणिकोष्ठ में पहुँचती है जहाँ सोने की वीणा में एक निभृत तार चुपचाप, झंकार की प्रतीक्षा में, पड़ा हुआ है; झंकार- जिससे समस्त देह और मन में अनिर्वचनीय की वाणी झंकृत हो उठती है।
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Fiction, Novel
Gora by Rabindranath Tagore (Hardback)
रवीन्द्र नाथ ठाकुर का उपन्यास ‘गोरा’, अंग्रेजी शासन में भारत की राष्ट्रीय चेतना का औपन्यासिक महाकाव्य है। यह उस कालखण्ड की रचना है, जब भारतीय समाज अपने जातीय गौरव से विछिन्न होकर या तो अपने कालचक्र के कारण या फिर पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आकर राष्ट्रीय चेतना से कट-सा गया था। चूंकि अंग्रेजी शासकों की राजधानी बंगाल थी, इसीसे यह भाव वहां ज्यादा प्रखर था , और उसे ही प्रतीक रूप में स्वीकार कर तत्कालीन भारतीय सामाजिक- राजनीतिक स्थिति को ‘गोरा’ उपन्यास में बड़ी जीवन्तता के साथ उभारा गया है। भारतीय इतिहास के गंभीर अध्येता इस बात से अनभिज्ञ नहीं हैं कि जब अंग्रेजों ने भारतीय मन को पराजित करने के लिए ईसाइयत का प्रचार प्रारम्भ किया, तब उसका विरोध भी जमकर हुआ। आरम्भ में अवश्य ही ईसाई पादरियों को अपनी लक्ष्य-सिद्धि में असफलता लगी, लेकिन ई. १८१३ में, धर्म प्रचारकों पर से प्रतिबन्ध उठ जाने के बाद जिस तरह से ईसाइयत का प्रचार हिन्दू धर्म को खत्म करने के लिए हुआ, उसका उल्लेख इतिहास ग्रन्थों में बद्ध है। कैरी, डफ, विल्सन आदि के नेतृत्व में ईसाई धर्म हिन्दू धर्म पर बाज की तरह टूट पड़ा। और इसके लिए अंग्रेजों ने बंगाल के पढ़े-लिखे लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करना प्रारंभ किया। अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार सहज संभव हो गया । स्थिति को ही देखकर तब मेकाले ने कहा था- थोड़ी-सी ही पाश्चात्य शिक्षा से बंगाल में मूर्त्ति पूजने वाला कोई नहीं रह जायेगा और ई. १८३५ में ही बंगाल में ईसाइयत के प्रचार से खुश होकर चर्चों की एक सभा में डफ ने कहा था- यह अंग्रेजी, देश में जिस-जिस ओर बढ़ेगी, उस ओर हिन्दुत्व के अंग टूटते जायेंगे और एक दिन ऐसा भी होगा कि हिन्दुत्व पूरी तरह से पंगू हो जायेगा।
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Fiction, Novel
The Home and the World by Rabindranath Tagore (Hardback)
- Page : 241
- ISBN-13 : 978-9356520110
- Dimensions : 22.5 x 14.5 x 1.8 cm
Set on a Bengali noble’s estate in 1908, this is both a love story and a novel of political awakening. The central character, bimala, is torn between the duties owed to her husband, Nikhil, and the demands made on her by the radical leader, sandip. Her attempts to resolve the irreconciliable pressures of the home and world reflect the conflict in India itself, and the tragic outcome foreshadows the unrest that accompanied Partition in 1947.
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