Jaishankar Prasad
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Ajatshatru by Jaishankar Prasad (Hardcover)
अजातशत्रु प्रसाद जी द्वारा वर्ष 1922 में रचित एक ऐतिहासिक नाटक है। मगध, कोसल एवं कौशांबी के राजपरिवार और उनके उत्तराधिकार संबंधी घटनाओं पर यह नाटक आधारित है। पिता – पुत्र संबंध, राज-लालसा, स्त्री- स्वभाव का महत्व, सत्ता के लिए षड्यंत्र एवं भगवान बुद्ध का संवाद इस नाटक का कथा-विस्तार निर्धारित करता है। अजातशत्रु का सत्तामोह में पिता बिम्बिसार को सत्ता से हटाना, कोसल एवं कौशांबी से युद्ध और पराजित हो पुनः पिता से माफी मांगना, यही मुख्यतः घटना-क्रम है। अंतर्छंद इस नाटक का मूलाधार है। मगध, कोसल एवं कौशांबी में प्रज्वलित विरोधाग्नि इस पूरे नाटक में फैली हुई है। संवाद के बीच में काव्य का भी कलात्मक प्रयोग किया गया है। बुद्ध का संवाद सत्ता के इस नाटक में अलौकिक ठहराव और परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। असत्य और बुराई पर सत्य के विजय की गाथा एवं उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण यह वीर रस की एक प्रधान रचना है।
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Hindi Literature
Dhruvswamini (Natak) by Jaishankar Prasad (H.B)
ध्रुवस्वामिनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दी नाटक है। यह प्रसाद की अंतिम और श्रेष्ठ नाट्य-कृति है। इसका कथानक गुप्तकाल से सम्बद्ध और शोध द्वारा इतिहाससम्मत है। यह नाटक इतिहास की प्राचीनता में वर्तमान काल की समस्या को प्रस्तुत करता है। प्रसाद ने इतिहास को अपनी नाट्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाकर शाश्वत मानव जीवन का स्वरूप दिखाया है, युग-समस्याओं के हल दिए हैं, वर्तमान के धुंधलके में एक ज्योति दी है, राष्ट्रीयता के साथ-साथ विश्व-प्रेम का सन्देश दिया है। इसलिए उन्होंने इतिहास में कल्पना का संयोजन कर इतिहास की वर्तमान से जोड़ने का प्रयास किया है। रंगमंच की दृष्टि से तीन अंकों का यह नाटक प्रसाद का सर्वोत्तम नाटक है। इसके पात्रों की संख्या सीमित है। इसके संवाद भी पात्रा अनुकूल और लघु हैं। भाषा पात्रों की भाषा के अनुकूल है। मसलन ध्रुवस्वामिनी की भाषा में वीरांगना की ओजस्विता है। इस नाटक में अनेक स्थलों पर अर्थवाक्यों की योजना है जो नाटक में सौंदर्य और गहरे अर्थ की सृष्टि करती है।
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Hindi Literature
Jaishankar Prasad ki Rachnaye (H.B)
महाकवि कथाकार नाटककार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती है बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी के बारे में अभी बातें खत्म नहीं हुई है उनकी कई सारी कविताएं कहानियां है जो आपको यथार्थ का भाव कराएंगी।
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Hindi Literature
Kamayani by Jaishankar Prasad (Hardback)
कला की दृष्टि से कामायनी, छायावादी काव्यकला का सर्वोत्तम प्रतीक माना जा सकता है। चित्तवृत्तियों का कथानक के पात्र के रूप में अवतरण इस महाकाव्य की अन्यतम विशेषता है। और इस दृष्टि से लज्जा, सौंदर्य, श्रद्धा और इड़ा का मानव रूप में अवतरण हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है। कामायनी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है। साथ ही इस पर अरविन्द दर्शन और गांधी दर्शन का भी प्रभाव यत्र तत्र मिल जाता है।प्रसाद ने इस काव्य के प्रधान पात्र ‘मनु’ और कामपुत्री कामायनी ‘श्रद्धा’ को ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में माना है, साथ ही जलप्लावन की घटना को भी एक ऐतिहासिक तथ्य स्वीकार किया है। शतपथ ब्राह्मण के प्रथम कांड के आठवें अध्याय से जलप्लावन संबंधी उल्लेखों का संकलन कर प्रसाद ने इस काव्य का कथानक निर्मित किया है, साथ ही उपनिषद् और पुराणों में मनु और श्रद्धा का जो रूपक दिया गया है, उन्होंने उसे भी अस्वीकार नहीं किया, वरन् कथानक को ऐसा स्वरूप प्रदान किया जिसमें मनु, श्रद्धा और इड़ा के रूपक की भी संगति भली भाँति बैठ जाए। परंतु सूक्ष्म सृष्टि से देखने पर जान पड़ता है कि इन चरित्रों के रूपक का निर्वाह ही अधिक सुंदर और सुसंयत रूप में हुआ, ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में वे पूर्णत: एकांगी और व्यक्तित्वहीन हो गए हैं।
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Fiction, Novel
Kankal by Jaishankar Prasad (Hardback)
कंकाल भारतीय समाज के विभिन्न संस्थानों के भीतरी यथार्थ का उद्घाटन करता है। समाज की सतह पर दिखायी पड़ने वाले धर्माचार्यों, समाज-सेवकों, सेवा-संगठनों के द्वारा विधवा और बेबस स्त्रियों के शोषण का एक प्रकार से यह सांकेतिक दस्तावेज हैं आकस्मिकता और कौतूहल के साथ-साथ मानव मन के भीतरी पर्तों पर होने वाली हलचल इस उपन्यास को गहराई प्रदान करती है। हृदय परिवर्तन और सेवा भावना स्वतंत्रताकालीन मूल्यों से जुड़कर इस उपन्यास में संघर्ष और अनुकूलन को भी सामाजिक कल्याण की दृष्टि का माध्यम बना देते हैं।उपन्यास अपने समय के नेताओं और स्वयंसेवकों के चरित्रांकन के माध्यम से एक दोहरे चरित्रवाली जिस संस्कृति का संकेत करता और बनते हुए जिन मानव संबंधों पर घण्टी और मंगल के माध्यम से जो रोशनी फेंकता है वह आधुनिक यथार्थ की पृष्ठभूमि बन जाता है। सृजनात्मकता की इस सांकेतिक क्षमता के कारण यह उपन्यास यथार्थ के भीतर विद्यमान उन शक्तियों को भी अभिव्यक्त कर सका है जो मनुष्य की जय यात्रा पर विश्वास दिलाती है।
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Short Story
Pratidhvani by Jaishankar Prasad (H.B)
प्रतिध्वनि महान लेखक श्रीप्रसाद की रचना भी का रूप है इस अगारी का मोह पत्थर की पुकार उस पारी मुद्धिमें जाल इतनी जैगी 46 अन्य दिन को मोह लेने वाली कथाए है। छायावाद के आधार स्तंभों में से एक जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 को काशी में हुआ था। वह संपन्न व्यापारिक घराने के थे और उनका परिवार संपता में केवल काशी नरेश से ही पीछे था। पिता और बड़े भाई की असामयिक मृत्यु के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही विद्यालय छोड़कर साथ में उतरना पड़ा। उनकी ज्ञान वृद्धि फिर स्वाध्याय से हुई। उन्होंने घर पर रहकर ही हिंदी, संस्कृत एवं फारसी भाषा एवं साहित्य का अध्ययन किया, साथ ही वैदिक वाम और भारतीय दर्शन का भी ज्ञान अर्जित किया। वह बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। आठ-नौ वर्ष की आयु में अमरकोश और लघु कौमुदी कंठस्थ कर लिया था जबकि कलाधर उपनाम से कवित्त और सवैये भी लिखने लगे थे।
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